Thursday, February 11, 2010

सपना

क्या तुम्हे कुछ महसूस हुआ?
क्या तुम्हें कुछ सुनाई दिया?
क्या तुम्हें कुछ दिखाई दिया?
शायद नहीं, तभी तो बुत बनी हो।

क्या तुम्हें कुछ महसूस हुआ?
मैंने अभी तुम्हें झकझोरा था,
अभी तो छुआ था तुम्हें,
तुम्हारी पलकों को, तुम्हारी बाँहों को,
तुम्हारे होटों को, तुम्हारी निगाहों को,
अगर अब भी एहसास न हुआ, तो कब होगा?

क्या तुम्हें कुछ सुनाई दिया?
मैं अभी तो चिल्लाया था,
अभी तो कान में कहा था,
तुम प्यारी हो, खुबसूरत हो,
मेरी रूह में हो, जान में हो,
अगर अब अभी सुनाई न दिया, तो कब देगा?

क्या तुम्हें कुछ दिखाई दिया?
मैंने अभी तो ताली बजाई थी,
अभी तो सामने आया था तुम्हारे,
थोडा हाथ हिलाया, एक गुलाब दिया,
थोडा पास आया, और पास आया,
अगर अब भी दिखाई न दिया, तो कब देगा?

आखिर क्यों बनी हो यों बुत?
आखिर क्यों नहीं कुछ कहती मुझसे?
आखिर क्यों हाथ नहीं बढाती आगे?
आखिर क्यों नहीं दिखाती वो प्यार भरी निगाहें?

या सिर्फ मेरे ख्वाबों में हो,
जागते तो सामने भी नहीं।

हा! जब ख्वाबों में ही प्यार न किया,
तो हकीकत क्या होगी?
मैं दुआ मांगूंगा खुदा से,
कभी तो मुहब्बत करोगी।

पर कभी सामने न आना,
न आना कभी रूबरू,
क्योंकि इसी बहाने से,
सपनों में तो मुझे मिलोगी।

Sunday, February 7, 2010

कवि सम्मलेन और IITian

काशीयात्रा-१० के सफल आयोजन के उपरांत कॉलेज का प्रांगन फिर से कुछ वैसा-वैसा हो गया है जैसा गर्मी के मौसम में हल्की बारिश से हो जाता है। जैसे थोडा खाने से क्षुधा और तीव्र हो जाती है, जैसे थोडा सा पीने से पीने की चाह बढ़ जाती है और जैसे किसी को हज़ार बार देखकर भी मन नहीं भरता, काशीयात्रा के बाद मंज़र कुछ वैसा ही है। खासकर कवि सम्मलेन एक ऐसा कार्यक्रम होता है जिसकी महक हमारी साँसों में सदा के लिए बस जाती है। प्रख्यात कवि कुमार विश्वास के संचालन में देश के जाने माने कवियों का जमघट कुछ ऐसा गुल खिला गया की वाह वाह करते करते पेट से आह उठने लगी।
इस बार के कवि सम्मलेन को और रोचक बना गयीं श्री राहत इन्दौरी जी की हसीं गज़लें। पहली बार सुनने में तो काफी उल-जलूल मालूम होती है पर यदि गौर फरमाया जाये तो कुछ इस तरह से बसा होता है उनमे सन्देश कि बस, रूह काँप उठती है।
शहर भर में बारूदों का मौसम है,
गाँव चलो, वहां अमरूदों का मौसम है।
एक अलग ही आकर्षण है उनकी ग़ज़लों का। सुनने के बाद बस एक ही आवाज़ निकलती है - मज़ा आ गया।
कवि सम्मलेन तो आया और चला गया, और अगले साल फिर आएगा परन्तु एक बात जो मुझे झिंझोड़ गयी वो यह कि-
हर जगह मैंने सुन लिए तेरे किस्से,
काव्य में अपना परचम कब लहराएगा IITian?
परेशान मत होइए, ये मेरी रचना है। हमारे लिए कहा जाता है कि हर तरफ हमारा बोल-बाला है। हर क्षेत्र में हम सर्वोपरि हैं, चाहे वो व्यावसायिक हो, प्रोद्योगिक हो या लेखन ही क्यूँ न हो। परन्तु काव्य एक ऐसा क्षेत्र रह गया जहाँ अभी तक कोई अपना नहीं दिखा। इस गूढ़ रहस्य को खंगाला तो इसका मूल कारण भी मिल गया। उस कारण से सभी रूबरू तो हैं, पर किसी ने शायद इस बारे में सोचा नहीं।
मेरे नज़रिए में कविता सिर्फ और सिर्फ भावनाएं होती हैं। हमारी भावनाएं जिन्हें शब्दों में पिरो कर उनके हार बनाते हैं। प्रेम-रस कि कविता तब तक अच्छी नहीं लग सकती जब तक बिछड़े प्रेमी कि याद न दिलाये, वीर-रस जब तक रोम रोम न खड़ा कर दे तब तक नहीं जंचता। बस यही तो है साड़ी मुसीबतों कि जड़, भावनाएं।
प्रेम रस कि कविता का जन्म भावनाओं से होता है। जिनके हृदय में प्रेम है वे ही महान कवि बनते है, क्योंकि उनके पास प्रेम है, प्रेरणा है। यहाँ से सब शुरू होता है। जब IIT co-ed होते हुए भी महज लड़कों का संसथान बना पड़ा है तो प्रेरणा कहाँ से आएगी? न तो यहाँ के लड़कों को लड़कियां दिखती हैं, न ही दिल में कोई भावनाएं उठती हैं, और न ही कोई प्रेरणा। तो जब प्रेरणा ही ना हो तो कविता का तो सवाल ही नहीं उठता।
कुछ लोग कविता अवश्य करते हैं, और अच्छी करते हैं। परन्तु वे प्रेम रस कि कम और हास्य रचनायें ज्यादा करते हैं। जो प्रेम-रस को अपना हथियार बनाने का दुस्साहस करते हैं वे या तो अपना रुख बदल लेते हैं या अपने ही हथियार द्वारा कटे जाते हैं।
इन सबका सिर्फ एक ही उपाय है। चूँकि भगवान् ने सिर्फ कुछ ही नारियों को इतनी बुद्धिमता प्रदान की है कि वे खुद से यहाँ आ सकें, इसलिए बाकियों को यहाँ लाने का और कवि उत्पादन क्षमता बढाने का दायित्व हमारा है। और इसका एकमात्र उपाय है - आरक्षण। अब जब हर तरफ आरक्षण बांटा ही जा रहा है तो इन्हें भी दे दिया जाए। फिर देखिएगा हमारे देश कि कलम कि ताकत। जो बड़े बड़े प्रेम-रस के कवियों को पानी न पिला दिया तो कहना।
IITians में बड़ी जान है साहब, जो जरुरत है तो बस, प्रेरणा की।